इसलिए लिखती हूँ…

You are currently viewing इसलिए लिखती हूँ…

हर किसी को जवाब नहीं दे पाती
इसलिए लिखती हूँ…


ख़ुद के सवालों के जवाब नहीं ढूढ़ पाती
इसलिए लिखती हूँ…


किसी की उम्मीद हूँ
इसलिए लिखती हूँ…


किसी की नई ज़िंदगी का आगाज़ हूँ
इसलिए लिखती हूँ…

फूलों, तितलियों और बादलों से बात नहीं कर पाती,
इसलिए लिखती हूँ…


किताबों के लेखक से उनकी किताबों के बारे में बया नहीं कर सकती
इसलिए लिखती हूँ…


किसी का ख़्वाब बनते हुए लिखती हूँ,
ख़ुद को किसी का अरमान बनाते हुए लिखती हूँ…


कभी आंखों के अश्कों कों रोकते हुए लिखती हूँ,
कभी होठों की मुस्कान छुपाते हुए लिखती हूँ,
कभी कहीं गुम और कभी हंसते हुए लिखती हूँ l

जोयौस जाया रौनियार


Stay in Touch

This Post Has 2 Comments

  1. SAMEER BHATIA

    Always want to read more and more from you. Like your other write ups even this one is amazing too. How true it is from any writer’s prospective. “Main isliye likhti hun”

Leave a Reply