कुछ तो बोलो ना।

क्यूँ बात नहीं सुनती मेरी, क्यूँ हसकर ताल देती हो हरवार मुझे, क्या नाराज़ हो मेरी किसी बात से, या डरती हो अतीत के किसी राज़ से

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ये इश्क़ भी कुछ पल का था।

एक बात अधूरी है मन मे,
जो लाख दफा तुझे कहनी थी।

है नूर अलग उस मुखःडे का,
वो आज भला क्यों सहमी थी।

वो होंठ भी तेरे सूखे थे,
साँसों में कुछ बेचैनी थी।

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तुम सिर्फ आज हो मेरी…

तुम सिर्फ आज हो मेरी। ये एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को कहते हुए उसकी तारीफ कर रहा है। और कह रहा है के वो उसके लबों की मुस्कुराहट ले आती है। पढिये प्रेम भर यह कविता

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