तुम सिर्फ आज हो मेरी…

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जिसका जिक्र किसी से ना कर पाऊं,
तुम ऐसी एक राज़ हो मेरी।

ना बयान कर सकूं ज़माने से,
ऐसी अनकही आवाज़ हो मेरी।

तुमसे मिलके मुस्कुराहटें लौटीं है लबों की,
तुम इक नई आगाज़ हो मेरी।

जिसके संगीत से मोहब्बत की पहल हो,
तुम ऐसी साज़ हो मेरी।

जिसे पढ़ने का हक़ सिर्फ मुझे है,
तुम ऐसी नमाज़ हो मेरी।

तुम पर लिखे हर हर्फ़ शायरी बन जाये,
वो शायराना अंदाज़ हो मेरी।

सायबा, लैला, शीरीं, सबका नूर फीका है तुम्हारे आगे,
तुम तो मुमताज़ हो मेरी।

काल की फिक्र में इन पलों को क्यूं जाया करूँ,
मुझे खबर है के तुम सिर्फ आज हो मेरी।।

– रॉनी


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