ये इश्क़ भी कुछ पल का था।

yeishq bhi bas kuch pal ka tha

एक बात अधूरी है मन मे,
जो लाख दफा तुझे कहनी थी।

है नूर अलग उस मुखःडे का,
वो आज भला क्यों सहमी थी।

वो होंठ भी तेरे सूखे थे,
साँसों में कुछ बेचैनी थी।

आंखें भी बादल बन बैठी,
जैसे अश्क़ों की धारा बहनी थी।

ना नज़रें मुझसे मिला सकी,
गम का घूँघट वो पहने थी।

ये इश्क़ भी बस कुछ पल का था,
इन्हें ख्वाब ही बनकर रहनी थी।

-रॉनी


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